मंगलवार, 10 दिसंबर 2024

उड़ते हुए

कभी
अपने नवजात पंखों को देखता हूँ
कभी आकाश को
उड़ते हुए।

लेकिन ऋणी मैं फिर भी
ज़मीन का हूँ
जहाँ
तब भी था
जब पंखहीन था
तब भी रहूँगा
जब पंख झर जाएँगे।

- वेणु गोपाल
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संपादकीय चयन 

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