शुक्रवार, 6 दिसंबर 2024

ऋतुओं का दीप

रोमांचित हुई रेत हरी-हरी दूब उगी
आज नई कोंपल ने आकाश उठाया है,

केले के पात हिले
एक-एक हिलने ने अतीत को सँभाल लिया,
एक-एक आग्रह की वर्तमान प्यास बुझी!

ठूँठों के स्वप्न हँसे पतझर के जाने से!
फूल-फूल केसर का नीड़ बना,
किसके मन चोट लगी भौंरों के गाने से?
बल्कि यहाँ एक और सुरभि को झोंकों का पंख मिला

जीवन के दरवाज़े ऋतुओं का यह पहला दीप जला!

- लीलाधर जगूड़ी
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संपादकीय चयन 

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