तेज़ी से भाग रही हैं
भरे तालाब को देखने
दिन भर से ऊबे लोग
मधुमक्खियों की तरह जमा हैं
वे अपने तालाब से बहुत प्यार करते हैं
गाय का रँभाना, बतख़ाें का चिंचिंयाना
दूर से खोमचे वाले की आवाज़ का आकाश में कँपकँपाना
अचानक रुकी बस के पहिए का ज़मीन पर घिसट जाना
रेशा दर रेशा शाम का संगीत बुन रहा है
किनारे पर बैठा
निष्पलक बूढ़ा अपनी उदास आँखों से
पानी पर डगमगाती नाव को
बचाने में लगा है।
- संगीता गुंदेचा
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संपादकीय चयन
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