बुधवार, 4 दिसंबर 2024

सुखद सबेरा

खिलखिलाकर उतरी सुबह
उसके होंठों पर

ख़ुशी
पसरकर बैठी
घर के कोने-कोने

छुमक रही थी
ठुमक रही थी
जैसे नन्हीं बच्ची के पाँवों की पैजनिया
उसके भीतर
सुखद सबेरा

झाँक रहा था
उसके मुख पर हौले-हौले

 - संज्ञा सिंह
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संपादकीय चयन 

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