मिलने और बिछड़ने के अंतराल को
ऐसे रखना कि
बाद
कभी बाद भी
बहुत बाद भी
कहीं राह चलते मिल जाऊँ तो
मुझसे मेरा हाथ पकड़कर
पूछ सको मेरा हाल
मुस्कुरा सको मुझे देखकर
जैसे मिल जाते हैं दो जाने-पहचाने राही
किसी दूसरी राह
मिलूँगी ज़रूर
वैसे ही
जैसे पहले कभी मिली थी!
- असीमा भट्ट
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संपादकीय चयन
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