बुधवार, 1 जनवरी 2025

नन्ही बेटी की हँसी

वह इतनी छोटी है
इतनी हल्की
कि उठाते हुए अतिरिक्त सावधान रहना होता है

वह बढ़ रही है
प्रकृति की तय गति से
अब हँसने लगी है
हँसती है तो लुढ़क जाती है
एक तरफ़
ऐसा लगता है कि बोझ मुक्त कलुष रहित
उसके भारहीन मन पर
एक मुस्कान भी भारी है।

- योगेश कुमार ध्यानी
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संपादकीय चयन 

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