वह इतनी छोटी है
इतनी हल्की
कि उठाते हुए अतिरिक्त सावधान रहना होता है
वह बढ़ रही है
प्रकृति की तय गति से
अब हँसने लगी है
हँसती है तो लुढ़क जाती है
एक तरफ़
ऐसा लगता है कि बोझ मुक्त कलुष रहित
उसके भारहीन मन पर
एक मुस्कान भी भारी है।
- योगेश कुमार ध्यानी
-----------------------
संपादकीय चयन
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें