मैं भूख पहनूँ, मैं भूख ओढ़ूँ, मैं भूख देखूँ, मैं प्यास लिक्खूँ
बरहाना जिस्मों के वास्ते मैं ख़्याल कातूँ, कपास लिक्खूँ
सिसक-सिसक के जो मर रहे हैं मैं उनमें शामिल हूँ और फिर भी
किसी के दिल में उम्मीद बोऊँ, किसी की आँखों में आस लिक्खूँ
-इकबाल साज़िद
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अनूप भार्गव जी के सौजन्य से
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