मीठी एक हिलोर भी हूँ मैं
तांडव जैसा शोर भी हूँ मैं
आँख चुरा लेती हूँ वरना
वैसे तो चितचोर भी हूँ मैं
थोड़ी सी हूँ तेरी जानिब
थोड़ी मेरी ओर भी हूँ मैं
कहने को आज़ाद परिंदा
तेरे हाथ की डोर भी हूँ मैं
शाम का कोई सन्नाटा हूँ
सुब्ह की उजली भोर भी हूँ मैं
जो दिखती हूँ उस पर मत जा
होने को कुछ और भी हूँ मैं
पत्थर जैसी फ़ितरत मेरी
लेकिन भाव-विभोर भी हूँ मैं
- डॉक्टर पूनम यादव
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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से
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