शनिवार, 18 जनवरी 2025

मैं

मीठी एक हिलोर भी हूँ मैं 

तांडव जैसा शोर भी हूँ मैं

आँख चुरा लेती हूँ वरना 

वैसे तो चितचोर भी हूँ मैं

थोड़ी सी हूँ तेरी जानिब 

थोड़ी मेरी ओर भी हूँ मैं

कहने को आज़ाद परिंदा 

तेरे हाथ की डोर भी हूँ मैं

शाम का कोई सन्नाटा हूँ 

सुब्ह की उजली भोर भी हूँ मैं

जो दिखती हूँ उस पर मत जा 

होने को कुछ और भी हूँ मैं

पत्थर जैसी फ़ितरत मेरी 

लेकिन भाव-विभोर भी हूँ मैं


- डॉक्टर पूनम यादव

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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से 


 

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