सोमवार, 20 जनवरी 2025

अर्थ बदल दूँ काश का

 

 सुबह-सुबह की धूप बना लूँ

भर दूँ रंग पलाश का।

 

मन हिरना को हंस बना लूँ

छू लूँ पंख प्रकाश का।

 

सोनी हल्दी सनी हथेली

कुमकुम की सौगंध

रह-रह कर आमंत्रित करती

नेहानुत अनुगंध

 

मन को पावन नीर बना लूँ

तन को हिम कैलाश का।

 

कोई परिचित लहरों जैसा

लेता है आलाप

खोता, उतरता लय धुन में

स्वप्नों में चुपचाप

मन है उसको मेघ बना लूँ

अधरों के आकाश का।

 

जी करता है अर्पित कर दूँ

कोरों का सब नीर

जैसे सागर के आँगन में

नदिया हारे पीर

मनभावन अनुमान बना लूँ

अर्थ बदल दूँ काश का

 

निर्मल शुक्ल

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-हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से 


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