संदेहों से घिरी पृथ्वी पर
प्रेम से पवित्र कुछ भी नहीं
आँसुओं से सिंचित कर
प्रेम को हरा रखने वाले प्रेमियों से सुन्दर कुछ भी नहीं
प्रेमियों के मिलने से ही होती है बारिश
चहकती है चिड़िया,गाते हैं भंवरे
प्रेमियों के तड़पने से ही खिलते हैं पुष्प
अप्रेम से भरी दुनिया में
खिला सकें यदि थोड़े से फूल
बिखेर सकें थोड़े से पराग
बचा सके यदि आँखों के पानी तो
बचेगी पृथ्वी पर रहने की गुंजाइश
प्रेमियों की साँसों से सुगन्धित रहे जीवन
प्रेमियों की जाग से उकता कर ये धरती
बोने लगे प्रेम के बीज
मै ऐसे प्रेम के कस्बे में रहती हूँ
जहाँ घृणा का प्रवेश वर्जित है।
- शालू शुक्ला
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सत्य नारायण पटेल के सौजन्य से
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