बुधवार, 15 जनवरी 2025

संदेहों से घिरी पृथ्वी पर


संदेहों से घिरी पृथ्वी पर 

प्रेम से पवित्र कुछ भी नहीं 

आँसुओं से सिंचित कर

प्रेम को हरा रखने वाले प्रेमियों से सुन्दर कुछ भी नहीं

प्रेमियों के मिलने से ही होती है बारिश 

चहकती है चिड़िया,गाते हैं भंवरे

प्रेमियों के तड़पने से ही खिलते हैं पुष्प


अप्रेम से भरी दुनिया में 

खिला सकें यदि थोड़े से फूल

बिखेर सकें थोड़े से पराग

बचा सके यदि आँखों के पानी तो

बचेगी पृथ्वी पर रहने की गुंजाइश 


प्रेमियों की साँसों से सुगन्धित रहे जीवन

प्रेमियों की जाग से उकता कर ये  धरती 

बोने लगे प्रेम के बीज

मै ऐसे प्रेम के कस्बे में रहती हूँ

जहाँ घृणा का प्रवेश वर्जित है।


- शालू शुक्ला

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सत्य नारायण पटेल के सौजन्य से


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