सोमवार, 13 जनवरी 2025
नदी का आवेग
पर्वतों के बीच बहती
नदी का आवेग
जैसे
अश्रु बनकर बिखरने से पूर्व
हड्डियों को ठकठकाता हुआ कोई दर्द
रिक्त मन की घाटियों को चीर जाए।
- जगदीश गुप्त
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