शुक्रवार, 10 जनवरी 2025

मुझमें हो तुम

कहीं मुझमें ही तो तुम
शारदीय नदी के जल में
उगते सूरज की तरह
किताबों के पन्नों में
छिपी सार्थक बातों की तरह
कहीं मुझमें ही हो तुम।

सूने कैनवस पर
उभरने वाले रंगों की तरह
कहीं मुझमें ही हो तुम।

- राकेश मिश्र
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संपादकीय चयन 

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