शुक्रवार, 31 जनवरी 2025

चिड़िया

अनंत आकाश को लाँघती
नापती उसकी ऊँचाई को

तुम्हारे पाँव
कोमल हैं चिड़िया
नन्हे-नन्हे पाँवों से
अनंत आकाश को छूती
तुम्हारे पाँव
क्या कभी थकते नहीं

जिजीविषा तुम्हारी भी
अनंत है
समुद्र की तरह
अथाह

झील-सी गहरी
तुम्हारी आँखों में
दिखती है नूतनता की चाह

चिड़िया
क्या तुम इसी धरती की वासी हो।

- वंदना पराशर
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संपादकीय चयन 

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