रविवार, 5 जनवरी 2025

आँखें

एक नदी हैं
मेरी आँखें
जिसके तटों को
छू-छू के रह जाती हैं
तुम्हारी पलकों की नाव।

- राकेश मिश्र
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संपादकीय चयन 

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