बुधवार, 8 जनवरी 2025

मृगजल ही सही

मृगजल ही सही
हमारा विश्वास गहरा है
लम्हा-लम्हा सूरज बुनने में
हमारी आँखें माहिर हैं
बूँद-बूँद रात पकाने में
हमारे चूल्हे प्रौढ़ हैं
मौसम शहीद हुए तो होने दो
भविष्य कुंभकर्ण-सा सोया है तो सोने दो

जब तक मिट्टी में
सोंधी गंध शेष है
अंजुलियाँ दर्पण बनी हुई हैं
पैर गीतों की कड़ियाँ बने हुए हैं
तब तक
हम
बिरवा-बिरवा खेती करेंगे
तिनका-तिनका किलकारियाँ सँजोएँगे
चप्पा-चप्पा आकाश नापते हुए
हम
सूरजमुखी फूल हो लेंगे
किरण-किरण बादल तलाशते हुए
हम
इंद्रधनुष हो जाएँगे

मृगजल ही सही
हम रेगिस्तान पी जाएँगे

- पद्मजा घोरपड़े
------------------

संपादकीय चयन 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें