गुरुवार, 5 दिसंबर 2024

साइकिल

दोनों पैडल पिता के पाँव हैं
टायर पिता के जूते
मुठिया उनके हाथ
कैरियर उनका झोला
हर रोज़ जाती है
उन्हें लेकर
और लाती है लादकर
गाते हुए लहराते हुए
बिना किसी हेडलाइट के भी
वह घुप्प अँधेरे में
चीन्ह लेती है अपनी राह
और मुड़ जाती है घर की ओर
हर रात पिता को
घर तक छोड़कर
फिर ख़ुद सोती है साइकिल
भूखी दीवार से सटकर
साइकिल
जो पिता की अभिन्न साथी है
किसी पेट्रोल-पंप तक नहीं जाती
कोई पेट्रोल नहीं पीती
जिसका अक्षय ईंधन
छिपा है पिता के पाँव में

 - संदीप तिवारी
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संपादकीय चयन 

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