उसने कहा
क्या नाज़ है?
मैंने कहा
हाँ बेशक!
चेहरे का रंग बदल जाता है
आँखों की पुतलियाँ धूमिल हो जाती हैं
नहीं बदलता
तो, मन का शफ्फाक रंग
बहता है निष्कलंक
गंगा की तरह
खनखनाता है
कौड़ियों की तरह
वही सत्य है
वही सुंदर
सौंदर्य आत्मावलंबन में है
हार जाने में नहीं!
- नीना सिन्हा
-------------------
-हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें