वो मिल के ग़ैर से ग़म को उबाल देता है
कि मेरी आंखों से दरिया निकाल देता है
तू इंसां होके भी मायूस उसकी रहमत से
जो एक कीड़े को पत्थर में पाल देता है
मैं इस अदा से हुई क़त्ल उसके हाथों से
मेरे तड़पने की क़ातिल मिसाल देता है
वो इक फ़क़ीर जो कासे को उल्टा रखता है
अमीर ए शहर को मुश्किल में डाल देता है
बंधी हैं उसके ही दामन से मेरी उम्मीदें
जो मेरे दिल को हवा में उछाल देता है
- नुजहत अंजुम
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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से
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