मंगलवार, 1 अप्रैल 2025

तेरा चुप रहना

तेरा चुप रहना मेरे ज़ेहन में क्या बैठ गया 
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया 

यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँ 
जो भी उस पेड़ की छाँव में गया बैठ गया 

इतना मीठा था वो ग़ुस्से भरा लहज़ा मत पूछ 
उसने जिस-जिसको भी जाने का कहा बैठ गया 

अपना लड़ना भी मोहब्बत है तुम्हें इल्म नहीं 
चीखती तुम रही और मेरा गला बैठ गया 

उसकी मर्ज़ी वो जिसे पास बिठा ले अपने 
इस पे क्या लड़ना फ़लाँ मेरी जगह बैठ गया 

बात दरियाओं की सूरज की न तेरी है यहाँ 
दो क़दम जो भी मेरे साथ चला बैठ गया

बज़्म-ए-जानाँ में नशिस्तें नहीं होतीं मख़्सूस 
जो भी इक बार जहाँ बैठ गया बैठ गया

- तहज़ीब हाफ़ी
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हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद 

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