शनिवार, 26 अप्रैल 2025

जो शिलाएँ तोड़ते हैं

ज़िंदगी को
वह गढ़ेंगे जो शिलाएँ तोड़ते हैं,
जो भगीरथ नीर की निर्भय शिराएँ मोड़ते हैं।
यज्ञ को इस शक्ति-श्रम के
श्रेष्ठतम् मैं मानता हूँ!!
ज़िंदगी को
वे गढ़ेंगे जो खदानें खोदते हैं,
लौह के सोए असुर को कर्म-रथ में जोतते हैं।
यज्ञ को इस शक्ति श्रम के
श्रेष्ठतम् मैं मानता हूँ!!
ज़िंदगी को
वे गढ़ेंगे जो प्रभंजन हाँकते हैं,
शूरवीरों के चरण से रक्त-रेखा आँकते हैं।
यज्ञ को इस शक्ति-श्रम के
श्रेष्ठतम् मैं मानता हूँ!!
ज़िंदगी को
वे गढ़ेंगे जो प्रलय को रोकते हैं,
रक्त से रंजित धरा पर शांति का पथ खोजते हैं।
यज्ञ को इस शक्ति-श्रम के
श्रेष्ठतम् मैं मानता हूँ!!
मैं नया इंसान हूँ इस यज्ञ में सहयोग दूँगा।
ख़ूबसूरत ज़िंदगी की नौजवानी भोग लूँगा।

- केदारनाथ अग्रवाल

-----------------------

- हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद 
 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें