मंगलवार, 29 अप्रैल 2025

ओ मेरे विशेषण

 हर विशेषण विशेष्य को कमज़ोर करता है

क्योंकि वह उसे अपना मुहताज बना लेता है

इसीलिए तो, मेरे विशेषण !

तुम मुझसे जीत गए हो

इसीलिए तो तुम हर बार मुँह फ़ाड़ कर हँसते हो

जब मैं तुमसे अपना सिर टकराता हूँ ।

कितनी बड़ी मूर्खता थी यह सोचना कि तुम्हारे बिना मैं कुछ नहीं हूँ

जब कि मैं जो कुछ हूँ, हो सकता हूँ, या होऊँगा

वह उतना ही जितना तुम्हारे बिना हूँ ।

तुम मैं नहीं हो यह ठीक है

तो फिर तुम हो ही क्या

महज़ एक डर, एक संकोच, एक आदत

जिससे मैं चाहे छूट न भी पाऊँ

पर जो मैं नहीं हूँ।


-भारत भूषण अग्रवाल

------------------------

- हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें