शांति से
रक्षा न हो,
तो युद्ध में
अनुरक्ति दे
लेखनी का
धर्म है,
युग-सत्य को
अभिव्यक्ति दे!
रक्षा न हो,
तो युद्ध में
अनुरक्ति दे
लेखनी का
धर्म है,
युग-सत्य को
अभिव्यक्ति दे!
छंद-भाषा-भावना
माध्यम बने
उद्घोष का
संकटों से
प्राण-पण से
जूझने की शक्ति दे!
- शैलेश मटियानी
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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से
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