शनिवार, 12 अप्रैल 2025

वासना

 आँच में तपकर

दूध उफना

आग ने पी लिया

एक सोंधी महक

माहौल में समा गई ।


वासना का ज्वार

संयम की सीमाएँ तोड़

उफना

दमित आकांक्षा ने तृप्ति पाई

एक दर्द मीठा-सा

मन में जगा

भला लगा ।


दूध चुक गया

वासना बुझ न पाई...।


- धनंजय वर्मा

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- हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से 

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