आँच में तपकर
दूध उफना
आग ने पी लिया
एक सोंधी महक
माहौल में समा गई ।
वासना का ज्वार
संयम की सीमाएँ तोड़
उफना
दमित आकांक्षा ने तृप्ति पाई
एक दर्द मीठा-सा
मन में जगा
भला लगा ।
दूध चुक गया
वासना बुझ न पाई...।
- धनंजय वर्मा
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- हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से
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