गुरुवार, 17 अप्रैल 2025

जय जय जय बस बोल जमूरे

आँख मींच ले सच्चाई पर,

मत होंठो को खोल जमूरे।


प्रश्न, नहीं हैं जिनके उत्तर

उन प्रश्नों पर कान नहीं दे।

आत्म मुग्ध हो सुनते जाना,

निंदाओं पर ध्यान नहीं दे।


डाल बुद्धि पर

कुलुफ़ कड़ा तू,

जय-जय-जय बस बोल जमूरे।


उसके सिर रख इसकी टोपी,

ख़ूब अफ़र कर पल्लेदारी।

दरबारी रागों को गाकर,

पुख़्ता कर ले दावेदारी।


दबा काँख में

भले कटारी,

मुँह में मिश्री घोल जमूरे।


समाधान की बात करें जो,

उन क़लमों की नोक तोड़ दे।

समरसता के गीत पढ़ें जो,

उनकी दुखती रग मरोड़ दे।


भली करेंगे राम

फोड़ तू,

सद्भावों के ढोल जमूरे।


- अनामिका सिंह

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- हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से 

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