सोमवार, 31 मार्च 2025

शुक्रिया

मार्च की उस दुपहर
मेरे बाजू पर तुम्हारा चेहरा पड़ा था,
कानों पर चिपके नीले हेडफ़ोन्स और बिखरे बालों के बीच
दमकता तुम्हारा स्वप्निल चेहरा
केसरबाई केरकर की आवाज़ में राग केदार सुनते हुए
नींद में झूल रहे थे तुम।

दाहिनी बाँह पर तुम्हारी नींद को यूँ सजाकर
बाईं हथेली में तुम्हारी ही पांडुलिपि के पन्ने पकड़े
पढ़ती रही मैं,
तुम्हीं को।

किसी झिलमिल प्रेम-कविता जैसी यह दुपहर
विश्व कविता दिवस के रोज़ जीवन में आई थी।
कविता को शुक्रिया कहूँ,
या तुम्हें?

- प्रियंका दुबे
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