उन से नैन मिलाकर देखो
ये धोखा भी खा कर देखो
दूरी में क्या भेद छिपा है
इसकी खोज लगाकर देखो
किसी अकेली शाम की चुप में
गीत पुराने गाकर देखो
आज की रात बहुत काली है
सोच के दीप जला कर देखो
जाग-जाग कर उम्र कटी है
नींद के द्वार हिलाकर देखो
- मुनीर नियाज़ी
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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से
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