बुधवार, 19 मार्च 2025

सुर

 कोई सुर अंदर ही बजता है कई बार

दीवार से टकराता है

बेसुरा नहीं होता फिर भी

 

कितनी ही बार छलकता है जमीन पर

पर फैलता नहीं

 

नदी में फेंक डालने की साजिश भी तो हुई इस सुर के साथ बार-बार

सुर बदला नहीं

 

सुर में सुख है

सुख में आशा

आशा में  साँस  का एक अंश

इतना अंश काफी है

मेरे लिए, मेरे अपनों के लिए, तुम्हारे लिए, पूरे के पूरे जमाने के लिए

पर इस सुर को

कभी सहलाया भी है ?

सुर में भी जान है

क्यों भूलते हो बार-बार


- वर्तिका नन्दा

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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से 

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