मैं हूँ
समर्पण हैं, समझौते हैं
तुम हो बहुत क़रीब
हँसी है, ख़ुशी है
और तुम हो नज़दीक ही
दर्द है, आँसू हैं
तुम कहीं नहीं
मैं हूँ मानवी
ओ सभ्य पुरुष !
- संध्या नवोदिता
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