शुक्रवार, 28 मार्च 2025

मैं हूँ मानवी

मैं हूँ

समर्पण हैं, समझौते हैं

तुम हो बहुत क़रीब


मैं हूँ

हँसी है, ख़ुशी है

और तुम हो नज़दीक ही


मैं हूँ

दर्द है, आँसू हैं

तुम कहीं नहीं


मैं हूँ मानवी

ओ सभ्य पुरुष !


-  संध्या नवोदिता

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- हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से 

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