शुक्रवार, 14 मार्च 2025

छू पाओ तो

छू पाओ तो

मन को छू लो


उन्मन मन नीरिल नयनों में

मदिर फागुनी धूप खिलेगी

अनायास ही महक उठेगा

मन सपनों में गन्ध घुलेगी

भावों के

उन्मुक्त गगन में

डोल सको पँछी से डोलो

छू पाओ तो

मन को छू लो


तन मिट्टी का एक खिलौना

इसको पाया तो क्या पाया

नदी रेत की मृग की तृष्णा

छाया केवल, छाया, छाया

प्राणों की

शाश्वत वीणा पर

घोल सको अमृत स्वर घोलो

छू पाओ तो

मन को छू लो


-  मधु प्रधान

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-हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से 

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