शनिवार, 15 मार्च 2025

मौन

 वो सब बाते अनकही रह गई हैं 

जो मै तुमसे और तुम मुझसे कहना चाहती थीं 

हम भूल गए थे

जब आँखे बात करती हैं 

शब्द सहम कर खड़े रहते हैं 

रात की छलनी से छन के निकले थे जो पल

वे सब मौन ही थे

उन भटकी हुई दिशाओ में

तुम्हारी मुस्कराहटों से भरी नज़रों ने जो चाँदनी की चादर बिछाई थी

अँजुरी भर भर पी लिए थे नेत्रों ने लग्न-मन्त्र

याद है मुझे


अब भी मेरी सुबह जब ख़ुशगवार होती है

मै जानता हूँ ये बेवज़ह नही

तुम अपनी जुदा राह पर

मुझे याद कर रही हो


-लीना मल्होत्रा

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- हरप्रीत सिंह के सौजन्य से 
 

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