शनिवार, 1 मार्च 2025

फिर बीता वसंत

तपती हवाओं में झुलस गई 
पाँखें वसंत की।

नदियों में पिघल 
बह गई 
साँसें बसंत की

अमराइयों में भँवरे 
बौरों से कर रहे 
बातें बसंत की

रेत की नदी में 
ठिठक गई 
नावें बसंत की

फिर बीता बसंत 
ताक पर रखीं रह गई 
यादें वसंत की।

- सुरेश ऋतुपर्ण 
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विजया सती की पसंद 

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