तपती हवाओं में झुलस गई
पाँखें वसंत की।
नदियों में पिघल
बह गई
साँसें बसंत की
अमराइयों में भँवरे
बौरों से कर रहे
बातें बसंत की
रेत की नदी में
ठिठक गई
नावें बसंत की
फिर बीता बसंत
ताक पर रखीं रह गई
यादें वसंत की।
- सुरेश ऋतुपर्ण
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