रविवार, 16 मार्च 2025

प्रेम

 मुमकिन है बहुत कुछ

आसमान से चिपके तारे अपने गिरेबां में सजा लेना

शब्दों की तिजोरी को लबालब भर लेना


देखो तो इंद्रधनुष में ही इतने रंग आज भर आए

और तुम लगे सोचने

ये इंद्रधनुष को आज क्या हो गया!


सुर मिले इतने कि पूछा खुद से

ये नए सुरों की बारात यकायक कहाँ  से फुदक आई?


भीनी धूप से भर आई रजाई

मन की रूई में खिल गए झम-झम फूल


प्रियतम,

यह सब संभव है, विज्ञान से नहीं,

प्रेम में आँखें खुली हों या मुंदी

जो प्रेम करता है

उसके लिए कुछ सपना नहीं

बस, जो सोच लिया, वही अपना है।


-वर्तिका नन्दा

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-हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से 

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