मंगलवार, 11 मार्च 2025

इच्छा से मुँह फेरकर

दोस्ती में प्रेम था
प्रेम में इच्छा
इच्छा से मुँह फेर कर
वह कहाँ जाएगी?
इच्छा से मुँह फेरकर
वह रेल की पटरी पर जाएगी
या झील के किनारे
या नींद की दसवीं गोली के सिरहाने
तीसरी मंज़िल की मुँडेर पर
अंतिम इच्छा के संकोच तक
प्रेम  में इच्छा थी, इच्छा में तृष्णा
तृष्णा क्यों माँगती थी
अपने लिए जगह?
काफ़ी नहीं थी तृष्णा के लिए
उनींद, अधनींद, स्वप्न का दोष
तृष्णा से बचकर वह कहाँ रहेगी?
तृष्णा से बचकर
वह अपनी देह में रहेगी
कभी न उतरने वाले
निन्यानवे के बुख़ार की तरह
पाप की ऐंठन की तरह
प्रेम में इच्छा थी
इच्छा में देह
देह जब नहीं बचेगी
इच्छा कहाँ रहेगी?

- गगन गिल
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अनूप भार्गव के सौजन्य से 

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