सोमवार, 2 जून 2025

स्त्रियों से ही है वसंत

स्त्रियों से ही है वसंत 

और स्त्रियों से ही है जीवन-सुख अनंत 

न हों स्त्रियाँ तो फिर कैसा ब्रह्म, 

कैसा ब्रह्मांड...?


नदियाँ स्त्रियों से,

फूलों में खुशबू स्त्रियों से,

आकाश स्त्रियों से,

आकाश में उड़ना स्त्रियों से

शस्त्र और शास्त्र स्त्रियों से 

और हार-जीत भी 

पाँव-पाँव चलता है, दौड़ता है, 

हाँफता है संसार 

तार-तार भी, बेतार भी, 

हो जाता है स्मृतियों में 

पहाड़ सदियों के ढोता है अपने कांधों पर 

बिजली के तारों से लपेटता है दुख अपने

दुख मगर स्त्रियों के भी तो कुछ कम नहीं

टुकड़ा-टुकड़ा सुलगती रहती हैं 

गीली लकड़ियाँ 

जीवन में जीवनभर के लिए 

भर जाता है धुआँ

अक्षर-अक्षर क्षरण, घिसता है पत्थर भी 

परिभाषाएँ बदलती नहीं हैं 

ताप की, संताप की 

जितना-जितना खुलती हैं 

अपनी आकाँक्षाओं में

उतना-उतना बंद होती जाती हैं स्त्रियाँ 

अपनी पवित्रताओं से करती हैं 

उद्धार सभी का 

उनकी सोच सिर्फ उनकी नहीं, न प्रेम हो 

एकाकी कुछ नहीं 

उनके एकान्त में कुछ भी नहीं

ढोल-ढमाके छीनते ही रहते हैं उनके सपने 

सपने वे भी छिन ही जाते हैं स्त्रियों के 

स्त्रियाँ जो देखती हैं सपने दूसरों के लिए 

दूसरों की दुनिया में जीवन नहीं, 

जीवन का अंत है 

स्त्रियों से ही वसंत है।


 - राजकुमार कुम्भज

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- हरप्रीत सिंह पुरी  की पसंद 



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