रविवार, 29 जून 2025

लगता है जाने पर मेरे

आने पर मेरे बिजली-सी कौंधी सिर्फ़ तुम्हारे दृग में
लगता है जाने पर मेरे सबसे अधिक तुम्हीं रोओगे!
 
मैं आया तो चारण-जैसा
गाने लगा तुम्हारा आँगन;
हँसता द्वार, चहकती ड्योढ़ी
तुम चुपचाप खड़े किस कारण?
मुझको द्वारे तक पहुँचाने सब तो आए, तुम्हीं न आए,
लगता है एकाकी पथ पर मेरे साथ तुम्हीं होओगे!
लगता है जाने पर मेरे सबसे अधिक तुम्हीं रोओगे!

मौन तुम्हारा प्रश्नचिह्न है, 
पूछ रहे शायद कैसा हूँ 
कुछ-कुछ चातक से मिलता हूँ
कुछ-कुछ बादल के जैसा हूँ; 
मेरा गीत सुना सब जागे, तुमको जैसे नींद आ गई, 
लगता मौन प्रतीक्षा में तुम सारी रात नहीं सोओगे! 
लगता है जाने पर मेरे सबसे अधिक तुम्हीं रोओगे!

परिचय से पहले ही बोलो, 
उलझे किस ताने-बाने में?
तुम शायद पथ देख रहे थे, 
मुझको देर हुई आने में;
जगभर ने आशीष पठाए, तुमने कोई शब्द न भेजा,
लगता है तुम मन-बगिया में गीतों का बिरवा बोओगे!
लगता है जाने पर मेरे सबसे अधिक तुम्हीं रोओगे!

- रामावतार त्यागी
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