बुधवार, 18 जून 2025

प्रीत किये दुख होय

हिमगिरी-सी पीड़ा सह जाने वाला हृदय
गौरेया के पंख की ठेस से टूट जाता है
जाते हुए तुम्हारी पीठ देखती हूँ
मेरी अंजुरी से छलक जाता है अमृत 

न धरती फटी न आसमान टूटा
ये संसार यथावत चलता रहा 
कहीं कोई पत्ता भी नहीं खड़का
मैंने अपने ही प्राण निकलते देखे
मेरी आँख से एक आँसू नहीं गिरा

सब इतना ठीक था, 
जैसे घड़ी न थमी 
न वक्त बदला
दीवार पर एक जाला नहीं था
मेरी चादर धुली हुई थी
मेरे माथे पर थी वही बिंदी
मैंने हँसना छोड़ा न गुनगुनाना
बस तुम्हारी पसंद का इत्र लगाना भूल गई 

तुम्हारे बाद आयु बची, जीवन नहीं

- श्रुति कुशवाहा
------------------

विजया सती के सौजन्य से 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें