शनिवार, 28 जून 2025
अकेला पानी
अपने ही अथाह में
खोजता है अकेला पानी
छिपने की जगह रेत में
रेत नहीं छिपाती उसे
ठेलती रहती है गहराई की ओर
रेत से पानी
पानी से रेत
मिल रहे हैं ऐसे ही
न जाने कब से इसी तरह
बचाए हुए अपना प्रेम
- ध्रुव शुक्ल
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हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद
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