स्त्री देह गढ़ने वाले
तुम्हारे साँचे में ही कोई दोष है
या मिट्टी ही वह किसी काम की नहीं
या फिर नाप-तौल की समझ ही ज़रा कच्ची है तुम्हारी!
आओ
मैं तुम्हे सिखाती हूँ
न्यून और आधिक्य का हिसाब
और सधे हुए अनुपातों का गणित
तुम ईश्वर हो तो क्या हुआ!
अपनी ही संतति से सीखने में कैसा संकोच!
चलो पहले स्त्री के कंधे बनाऐंगे
देखो! बहुत कंजूसी ठीक नहीं
इतनी ज़िम्मेदारियों का बोझ उठाने के लिए
मज़बूत कँधों की पेशियाँ बनाने में
शक्ति की ज़रा ज़्यादा टिकाऊ मिट्टी लगती है
दिल धड़के भी, प्रेम भी करे और आघात भी सहे
यही दस्तूर है न तुम्हारी दुनिया का!
लिहाजा हृदय बनाऐंगे
ज़रा मज़बूत और ख़ूब पक्की मिट्टी से
कि ज़रा ज़रा-सी बात पर आहत होकर टूट न जाए
हाथ पैरों को देंगे
थोड़ा इस्पाती कलेवर
कि बाहर निकलकर कमा खा सके,
इच्छा के विरुद्ध किसी बात पर
वक़्त पड़ने पर तमाचा या लात जड़ सके
सिर्फ धीरज के बल पर कोई कितना निर्वाह करे बाबा?
मति गढ़ेंगे, सूझ-बूझ से भरी प्रत्युत्तपन्नता वाली
कि निर्णय ले सके स्वयं समय पर
मुंह ही न देखती रहे किसी का
स्मृतियों के ख़ाने अलग-अलग रखेंगे
कटु स्मृति को रखेंगे थोड़े ही समय रहने वाले ख़ाने में
कि दुखों की उम्र ज़रा कम लंबी हो
आत्मा हो
ज़रा कम लजीली, कम संकोची
कि उम्र इज़्ज़त मर्यादा संस्कार
और लोक व्यवहार की भेंट न चढ़ जाए
ओ प्यारे पिता
अब के जो भेजो पृथ्वी पर कोई स्त्री
तो उसकी देह की प्राण प्रतिष्ठा
सम्मान और स्नेह के मंत्रों से करना
देना कम दुर्भाग्य,
कम लाज और भय
कम तिरस्कार, कम अपमान
कम समझौते, कम हीनताबोध के घाव
देखो!
पिता होकर भेद न करना!
अब अगर कोई निर्मिति हो
तो अपनी दोनों संतानों को बराबर देना अवसर।
- सपना भट्ट
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विजया सती की पसंद
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