रविवार, 8 जून 2025

वृक्ष विहीन

वृक्ष विहीन हुई जाती थी धरती
लालच की आँत फैलती जाती थी

ऐसे में देखा मैंने 
मेरे घर के गमले में
नन्हा-सा पीपल एक उगा है
दस-ग्यारह पत्ते फूटे हैं उस पर
लहराते हैं

शायद कोई पांखी 
खाकर गोल
उड़ते-उड़ते बीज यहाँ पर डाल गया था
पड़ा हुआ था जो मिट्टी में दबा हुआ था

पाकर परस हवा पानी का
उग आया है

मैंने सोचा
मैं इसको रोपूँगा घर के सम्मुख
सींचूँगा बाड़ करूँगा 
जिस पर पांखी आऐंगें

वृक्ष काटने वाले निशदिन जुटे हुए हैं बेशक 
लेकिन 
नन्हीं गुरगुल गौरैया टुइयाँ तोता
भी तो भरसक जुटे हुए हैं

विनोद पदरज
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विजया सती की पसंद 

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