लार टपकाते हुए खा लिया
बड़ी मछली ने छोटी मछली को
बड़े आदमी ने छोटे आदमी को
बड़ी रेखा ने छोटी रेखा को
बड़े वृत्त ने छोटे वृत्त को
बड़े खेत ने छोटे खेत को
बड़ी हैसियत ने छोटी हैसियत को
और बड़े पेड़ों ने भी अंततः
छोटे पेड़ों को
ऐसे में आसमान ही था
जिसने पनपने दिया अपनी छाँव में हर किसी को
दिया हर किसी को हक-अधिकार पाने का अवसर
दिया जीवन-रस, रंग-ढंग, स्नेह
और भरपूर हरीतिमा
जब बड़ा बनूँगा
आसमान ही बनूँगा।
बड़ी मछली ने छोटी मछली को
बड़े आदमी ने छोटे आदमी को
बड़ी रेखा ने छोटी रेखा को
बड़े वृत्त ने छोटे वृत्त को
बड़े खेत ने छोटे खेत को
बड़ी हैसियत ने छोटी हैसियत को
और बड़े पेड़ों ने भी अंततः
छोटे पेड़ों को
ऐसे में आसमान ही था
जिसने पनपने दिया अपनी छाँव में हर किसी को
दिया हर किसी को हक-अधिकार पाने का अवसर
दिया जीवन-रस, रंग-ढंग, स्नेह
और भरपूर हरीतिमा
जब बड़ा बनूँगा
आसमान ही बनूँगा।
- खेमकरण ‘सोमन'
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-हरप्रीत सिंह पुरी की पसंद
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