गुरुवार, 1 मई 2025

जब बड़ा बनूँगा

लार टपकाते हुए खा लिया
बड़ी मछली ने छोटी मछली को
बड़े आदमी ने छोटे आदमी को
बड़ी रेखा ने छोटी रेखा को
बड़े वृत्त ने छोटे वृत्त को
बड़े खेत ने छोटे खेत को
बड़ी हैसियत ने छोटी हैसियत को
और बड़े पेड़ों ने भी अंततः
छोटे पेड़ों को
ऐसे में आसमान ही था
जिसने पनपने दिया अपनी छाँव में हर किसी को
दिया हर किसी को हक-अधिकार पाने का अवसर
दिया जीवन-रस, रंग-ढंग, स्नेह
और भरपूर हरीतिमा
जब बड़ा बनूँगा
आसमान ही बनूँगा।

- खेमकरण ‘सोमन'

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-हरप्रीत  सिंह पुरी  की  पसंद 
 

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