रविवार, 11 मई 2025

तुम ज्यों मेरी चाय

सारे दिन की

थकन मिटाते

तुम ज्यों मेरी चाय


बातों में

अक्सर परोसना

मीठा औ’ नमकीन

कितनी खुशियाँ

भर देते हैं

फ्लेश बैक के सीन


मुस्कानों का

तुम बन जाते

हो अक्सर पर्याय


कितना कुछ

हल कर देती है

अदरक जैसी बात

लौंग, इलायची

बन जाते हैं

प्रेम भरे जज्बात


जितनी भी

जो भी शिकायतें

हो तुम सबका न्याय


तुम बिन कहाँ

शाम भर पाती

इस मन में उल्लास

सच पूछो तो

मेरे होने

का तुम हो आभास


पल दो पल

जो साथ मिल रहे

वह ही मेरी आय


-   गरिमा सक्सेना

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- हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से 



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