शनिवार, 3 मई 2025

कामना

 एक सुई चाहिए

हो सके तो एक दर्जी की उंगलियाँ भी

सौ-सौ चिथड़ों को जोड़कर

एक बड़ी सी कथरी बनाने के लिए


एक साबुन चाहिए

हो सके तो धोबिन की धुलाई का मर्म भी

बीसों घड़ों का पानी उलीचकर

कामनाओं का चीकट धोने-सुखाने के लिए


एक झोला चाहिए

हो सके तो कवियों का सन्ताप भी

अर्थ गँवा चुके ढेरों शब्दों को उठाकर

नयी राह की खोज में जाने के लिए


सुई साबुन पानी और कविता के अलावा

कुछ और भी चाहिए

शायद भाषा का झाग भी

मटमैले हो चुके ढाई अक्षर को चमकाकर

एक नया व्याकरण बनाने के लिए.


- यतीन्द्र मिश्र

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- हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से 

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