प्यास कुछ और बढ़ी
और बढ़ी ।
बेल कुछ और चढ़ी
और चढ़ी ।
प्यास बढ़ती ही गई,
बेल चढ़ती ही गई ।
कहाँ तक जाओगी बेलरानी
पानी ऊपर कहाँ है ?
जड़ से आवाज़ आई--
यहाँ है, यहाँ है।
और बढ़ी ।
बेल कुछ और चढ़ी
और चढ़ी ।
प्यास बढ़ती ही गई,
बेल चढ़ती ही गई ।
कहाँ तक जाओगी बेलरानी
पानी ऊपर कहाँ है ?
जड़ से आवाज़ आई--
यहाँ है, यहाँ है।
- अशोक चक्रधर
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- हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से
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