मैंने
सपनों के गुब्बारे
उड़ाए
वे / आकाश में
विलीन हो गए
फिर
इतना संतोष / कि वे कभी
कहीं तो उतरेंगे ।
- पूरन मुद्गल
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- हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से
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