विस्मित देखते हैं लोग
मुझको अन्य होते हुए
और रेशा-रेशा मर रहा हूँ मैं
अनुपल जन्म लेता हुआ :
यही तो होता है हर बार।
अभिनय क्या आत्महत्या है
नए जन्म के लिए
जिसमें अपने को ख़ुद
जनता हूँ मैं
जनकर मार देता हूँ!
- नंदकिशोर आचार्य
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- हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से
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