रविवार, 4 मई 2025

फूल खिलें

 फूल खिलें

आंगन या मन में

बात वही है

फूल खिलें

बाहर या भीतर

अंतर क्या है

सुख देते

आंखों को

मन को

एक गंध

उठती भीतर से

और छलकती है

बाहर को

एक गंध

बाहर से आकर

मन के भीतर

धीरे से

चुपचाप उतरती!


फूल खिलें

आंगन या मन में

हर क्षण

सरल-तरल हो उठता

खिल-खिल जाता

इन बेहद

आत्मीय क्षणों में

रंग

बहुत अपने-से लगते

जैसे हम खुद

रंगों में प्रतिबिम्बित हो कर

चमक उठे हों!


फूल खिलें

आंगन या मन में

दिन प्रसन्न

हो जाता बरबस

ऋतु उदार

हो उठती सहसा

मौसम

अंतरंग हो जाता

और स्वयं हम

सहजानंदी राग

गुनगुनाकर

उसकी अनुगूंजों की उन्मुक्त धार में

मौन डूबते-उतराते हैं!

फूल खिलें

आंगन या मन में

राग-रंग

गंधों-छंदों का उत्सव

हो जाता है हर पल

यह उत्सव

मन का उत्सव है!

पर यह

कभी-कभी होता है

नये वर्ष में

यही कामना है-

यह उत्सव

बार-बार

आये जीवन में!

फूल खिलें

आंगन में

मन में!


- योगेन्द्र दत्त शर्मा

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- हरप्रीत सिह पुरी की पसंद 



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