जब आता है इस धरती पर मनुष्य
वह होता है निडर
नहीं जानता डर नाम की किसी चीज़ को
धीरे-धीरे लगता है डरने
धरती की हर चीज़ से
उसे डराते हैं उसके तमाम विश्वास
उसके सपने, रिश्ते, उसके अपने
टूट जाती है उसकी-
हिम्मत और हौसलों की लाठी
डरने लगता है वह अपनी ही परछाईं से
डरता हुआ मनुष्य
कहीं से भी नहीं लगता मनुष्य ।
- कुमार कृष्ण
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- हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से
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