बुधवार, 25 जून 2025

अंतहीन हैं मेरी इच्छाएँ

समय बहुत कम है मेरे पास
और अंतहीन हैं मेरी इच्छाएँ

गोरैया-सा चहकना चाहती हूँ मैं
चाहती हूँ तितली की तरह उड़ना
और सारा रस पी लेना चाहती हूँ जीवन का

नाचना चाहती हूँ इस कदर कि
थक कर हो रहूँ निढाल

एक मछली की तरह तैरना चाहती हूँ
पानी की गहराइयों में

सबसे ऊँचे शिखर से देखना चाहती हूँ संसार
बहुत गहरे में कहीं गुम हो रहना चाहती हूँ मैं

इस कदर टूटकर करना चाहती हूँ प्यार 
कि बाकी न रहे
मेरा और तुम्हारा नाम-ओ-निशान
इस कदर होना चाहती हूँ मुक्त 
कि लाख खोजो
मुझे पा न सको तुम
फिर
कभी भी कहीं भी

- देवयानी
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हरप्रीत सिंह पुरी के सौजन्य से 

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