शुक्रवार, 13 सितंबर 2024

आँगन-आँगन दीप धरें

आँगन-आँगन दीप धरें
यह अँधकार बुहरें

होता ही आया तम से रण
पर तम से तो हारी न किरण
जय करें वरण ये अथक चरण
भू-नभ को नाप धरें

लोक-हृदय अलोक-लोक हो
शोक-ग्रसित भव गत-शोक हो
तमस-पटल के पार नोक हो
यों शर-संधान करें

डूबे कलरव में नीरवता
भर दे कोमलता लता-लता
पत्ता-पत्ता हर्ष का पता
दे, ज्योतित सुमन झरें

- राजेंद्र गौतम
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कविता कोश से साभार 

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