रौशनी है, धुंध भी है और थोड़ा जल भी है
ये अजब मौसम है जिसमें धूप भी बादल भी है।
चाहे जितना भी हरा जंगल दिखाई दे हमें
उसमें है लेकिन छुपा चुपचाप दावानल भी है।
हर गली में वारदातें, हर सड़क पर हादसे
ये शहर केवल शहर है या कि ये जंगल भी है।
एक-सा होता नहीं है ज़िंदगी का रास्ता
वो कहीं ऊँचा, कहीं नीचा, कहीं समतल भी है।
खिलखिला लेता है, रो लेता है संग-संग ही शहर
मौत का मातम भी इसमें जश्न की हलचल भी है।
- कमलेश भट्ट 'कमल'
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संपादकीय चयन
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